अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस : ” रोटी मेहनत की खाने की थाली मजबूरी और मजदूरी की सम्मान जिसे दूर से ताक रहा हो उसे इंसान से मजदूर बनाया जा रहा है “
हाड मांस की चलती फिरती एक मशीन जिसे आप मजदूर कह सकते हैं ‘मजदूर’ जिसका कोई ना धर्म होता है ना कोई जात, जिसका धर्म होता है मेहनत ,रोटी ,कपड़ा, मकान और चंद जरूरत और जिस की जात है ‘भूख’
अंतराष्ट्रीय मजदूर दिवस
पेट की भूख जिसके घर में दिए जलते हो हर रोज पेट में जलती हुई आग के वो समुदाय जिसका सालू से वर्षों से हमेशा शोषण प्रताड़ना की जा रही हो जिसे धन्ना सेठ हाड मांस की मशीनरी के तौर पर कारखानों में अपनी मशीनों की भट्टी में जलते छोड़ देते हैं वही मजदूर जिसका राष्ट्र बहुत बड़ा न होकर उसका परिवार बन जाता है
वही मजदूर जिसे देश की सुरक्षा सताने से पहले हर रोज शाम को अपने परिवार की भूख से निपटाने की होती है जिसे हर रोज शाम को ना जलने वाले चूल्हे की चिंता सताती हो वही मजदूर जो देश की बड़ी अर्थव्यवस्था का जो इंजन है उसमें एक हाड मांस का मशीन के रूप का मशीन के रूप में काम कर रहा है
आज कई देशों में मजदूरों की प्रताड़ना पर रोक लगी है परंतु आज भी कई देश कई जगह कई कारखाने आज भी उन का उत्पीड़न हो रहा है शायद आज भी 1886 की क्रांति की किरणें उन कारखानों तक नहीं पहुंची है
आज भी वह मजदूर पेट की आग को बुझाने के लिए खुद को जला रहे हैं आज भी शाम के चूल्हे को जलाने के लिए वह हर रोज खुद को कारखानों के अंधकार में जला रहे है और ना सुबह का सूरज देख पाते हैं ना शाम का ढलता हुआ सूरज देख पाते मानो उन के जीवन में सूरज ही ना हो ,
मजदूर शायद वही इंसान जो सिर्फ वोट देने के काम आता हो जो सिर्फ सरकार बनाने के काम आता हो और सरकार को उसके लिए कोई कानून , नियम या स्वास्थ्य व्यवस्था या शिक्षा व्यवस्था बनाने की सुध ना आती आती हो वही मजदूर जो सिर्फ मरने के लिए छोड़ दिया जाता हो
आज भले उन तमाम शोषित पीड़ित हाड मांस के इंसानों का एक संगठित होने का दिवस है तुरंत अगर वास्तविकता देखी जाए सच की आंखों से तस्वीर देखी जाए तो आज भी शायद वह तस्वीर धुंधली सी नजर नजर आती है जिस तस्वीर में ना तो स्वास्थ्य का कोई रंग है ना शिक्षा का कोई ढंग है ना जीवन की कोई कला है सिर्फ है तो भूख का एक धुंवा और दिखता है तो सिर्फ यह की उस धुंधली सी तस्वीर को आज भी कोई अमीर व्यापारी खरीद रहा हो या कोई नेता खरीद रहा हो हो रहा हो हो अगर कोई ना खरीद रहा हो हो रहा हो हो तो उसे सरकार नीलाम कर रही हो.
उम्मीद है सभी मजदूर फिर इकट्ठा होकर खुद के लिए फिर लड़ेंगे खुद के साथ खुद के लिए खड़े होंगे
इसी के साथ सभी को मजदूर दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं आपके जीवन में तमाम मुरझाए हुऐ फुल खिले जिनके लिए आपने हर आंदोलन में अपने अपने जिस्म में बहते हुऐ खुन और मेहनत के रंग को बहाया है
रोबिन सिंह
प्रदेश प्रवक्ता
आर्यन छात्र संगठन उत्तराखण्ड