गढ़वाल रायफल का इतिहास हिंदी में / Garhwal Rifles History In Hindi
सन 1887 में अफगानों के विरुद्ध कंधार के युद्ध में बलभद्र सिंह नेगी को उनके साहस, वीरता के लिए इंडियन आर्डर ऑफ़ मेरिट जो ईस्ट इंडिया कम्पनी के द्वारा भारतीय सैनिकों को दिया जाने वाला सम्मान था, आर्डर ऑफ़ बिट्रिश इंडिया आदि सम्मान दिए गए, और बिट्रिश शासन गढ़वाली सैनिकों की वीरता, युद्ध कौशल देख चुके थे और यही से शुरू हुआ गढ़वाल राइफल की स्थापना का सफ़र. यह भी कहा जाता है की बलभद्र सिंह नेगी ने ही गढ़वाली बटालियन बनाने का प्रस्ताव बिट्रिश शासन के समुख रखा था.
1890 2 बटालियन को जब बर्मा भेजा गया तो इस बटालियन में Garhwali और गोरखा सैनिक थे. बर्मा में हुए युद्ध में गढ़वालीयों के बहुत अच्छे प्रदर्शन के कारण इसे Garhwal Rifles नाम दे दिय गया.
Garhwal Rifles की भूमिका:
गढ़वाल राइफल की भूमिका प्रथम विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध, भारत पाकिस्तान युद्ध (1965), भारत चीन युद्ध, भारत पाकिस्तान युद्ध (1671), कारगिल युद्ध आदि में देखने को मिलती है, इन सभी युद्ध में कुल मिलकर गढ़वाल राइफल के 700 से भी अधिक जवान शहीद हुए थे-
प्रथम विश्व युद्ध में :
अगस्त 1914-15 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत, फ़्रांस की ओर से लड़ा था, गढ़वाल राइफल की प्रथम और द्वितीय बटालियन ने मेरठ डिविजन की गढ़वाल ब्रिगेड के अंतर्गत इस युद्ध में भाग लिया था, इसके आलावा इस बिग्रेड की अन्य दो बटालियन 2 लिस्टरर्स और 2/3 गोरखा भी थी.
भारतीयों के द्वारा फ़्रांस की ओर से लड़े गए इस युद्ध में 6 भारतीय वीरों को फ़्रांस के सर्वोच्च सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था, जिसमे से विक्टोरिया क्रॉस प्राप्त करने वाले 2, सैनिक गढ़वाली बटालियन के थे, इस युद्ध से पहले एस्ट इंडिया कम्पनी के शासन में भारतीयों को विक्टोरिया क्रॉस के योग्य नहीं समझा जाता था, इसके बदले उन्हें इंडियन आर्डर ऑफ़ मैरिड द्वारा सम्मानित किया जाता था जो एक पुराना पदक था.
प्रथम विश्व युद्ध में 39 गढ़वाल राइफल में प्रथम वटालियन के नायक दरवान सिंह नेगी पहले भारतीय थे जिन्हें फ़्रांस का सर्वोच्च सैनिक सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया था. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इन्हें अपनी रेजिमेंट के साथ फ़्रांस के फेस्तुबर्त के निकट पहाडियों को दुश्मन सेना से वापस लेना था जिसके लिए 23-24 नवम्बर 1914 रात को दुश्मन के खिलाप मोर्चा संभाला गया, ये हिम्मत के साथ आगे बढ़ते रहे लेकिन इस दौरान इनके सिर और वांह में जख्म हो गया था लेकिन इसके वावजूद भी ये आगे बढ़ते रहे और दुश्मन सेना को खदेड़ दिया.
इस युद्ध में 39 गढ़वाल राइफल, 2 बटालियन के रायफल मैन गबर सिंह नेगी ने अकेले ही बहुत से महत्वपूर्ण निर्णय लेकर अपनी वीरता दिखाई और जर्मनी के सैनिको को खदेड़कर रख दिया, और खुद वीर गति को प्राप्त हुए, उनके द्वारा दिए गए इस उत्कृष्ट बलिदान के लिए उन्हें विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया.
खाना बाजार की घटना
23 अप्रैल 1930 को गढ़वाली बटालियन काबुली फाटक पर तैनात थी, इस बटालियन का नृतत्व नायक वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली कर रहे थे, सरकारी फौजे नगर को धेर चुकी थी, क्योंकि यहाँ पर एक आम सभा होने जा रही थी, अंग्रेज असफर रिकेट ने सभा में उपस्थित सभी लोगो को वहां से हट जाने को कहा लेकिन कोई भी टस से मस नहीं हुआ.
गढ़वाली पलटन को इन पर गोली चलाने को कहा गया लेकिन वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली ने सीज फायर करने का आदेश दिया, और कहा अपने निहत्थे देशवासियों पर गोली चलाना अपराध है, इसलिए गोली नहीं चलेगी, लेकिन अंग्रेज अफसर ने गौरी पलटन को बुलाकर गोली चला दी और बहुत से लोग धायल हुए और सभा भंग हो गई, चन्द्र सिंह गढ़वाली ने खुद सजा भोगी लेकिन कभी अपने देशवासियों पर गोली नहीं चलाई. इस घटना से प्रभावित होकर बहुत से सैनिक बाद में आजाद हिंद फ़ौज की ओर से लड़े थे.
द्वितीय विश्व युद्ध –
1941-42 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान गढ़वाल राइफल में 7 नयी बटालियन को जोड़ा गया, इससे पहले प्रतिवर्ष 200 रेक्रुट्स भर्ती होती थे लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यह संख्या 6 हजार पहुँच गयी थी, गढ़वालीओं के सेना के प्रति योगदान की कल्पना इस बात से की जा सकती है की उस समय पौड़ी गढ़वाल में सेना में भर्ती होने वाले वयस्क जिनकी उम्र सेना में भर्ती होने लायक थी की संख्या 1 लाख थी जिसमे से 26 हजार सेना में भर्ती हुए थे.
भारत चीन युद्ध (1962)-
सन 1962 में भारत चीन के बिच हुए युद्ध में भी गढ़वाल राइफल की अहम भूमिका रही है, इस समय गढ़वाल राइफल की तैनाती अरुणांचल सीमा पर थी, नूरानांग की पहाड़ियों पर 62 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे, और बहुत से सैनिको को कैद किया गया था, लेकिन रायफल मैन जसवंत सिंह रावत, त्रिलोक सिंह नेगी और गोपाल गुंसाई ने चीनी सेना के जो दांत खट्टे किये थे वह आज भी चीन को याद है.
इस लड़ाई में चीन भारतीय सेना पर हावी हो रहा था, जिस कारण गढ़वाल राइफल की 4 बटालियन को वापस बुला लिया गया, लेकिन इसमें से 3 वीर सैनिक जसवंत सिंह रावत, त्रिलोक सिंह नेगी, और गोपाल गुंसाई वापस नहीं गए बल्कि दुश्मन सेना का सामना करते रहे, तीनों सैनिक हिम्मत के साथ आगे बढ़ते गए और दुश्मन सेना के बंकर तक जाकर ग्रेनेड से हमला कर बंकर नष्ट किया और मशीन गन को अपने कब्जे में लिया था.
इस गोलाबारी में त्रिलोक सिंह नेगी और गोपाल गुंसाई शहीद हो गए थे लेकिन जसवंत सिंह रावत ने बहुत सी जगह पर राइफल लगाई हुई थी और वह अलग अलग जगह से अकेले दुश्मन सेना पर प्रहार कर रहे थे, इससे दुश्मन सेना यह अंदाजा नहीं लगा पा रही थी की यहाँ कितने सैनिक थे, चीन को यह पता चल गया की वह केवल एक सैनिक है, और इसके बाद उन्होंने जसवंत सिंह रावत को भी घेर लिया था और उनका सिर काटकर अपने साथ ले गए थे लेकिन इन 3 वीरों का बलिदल व्यर्थ नहीं गया क्योंकि इन्होने इस लड़ाई में चीन को अरुणांचल पर अपना कब्ज़ा करने से बचा लिया था.
भारत पाकिस्तान युद्ध (1965)-
भारत पाकिस्तान के बिच 1965 में हुए युद्ध में गढ़वाल राइफल की 8वीं बटालियन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, क्योंकि जब पाकिस्तान सैनिकों ने भारत में घुश्पैठ की कोशिस की तो गढ़वाल राइफल के इन सैनिकों ने ही भारतीय सेना की और से पाकिस्तान के दांत ऐंसे खट्टे किये थे की जो आज भी पाकिस्तान को याद है.
8 गढ़वाल राइफल ने पाकिस्तान के बुटुर डोंगराडी पर कब्ज़ा कर भारतीय झंडा फहराया था, वही 8 गढ़वाल राइफल के नाम पर ही पाकिस्तान में सबसे अन्दर तक जाने, और लम्बे समय तक युद्ध करते हुए रुकने का रिकॉर्ड भी दर्ज है. भारत पाकिस्तान की इस युद्ध में 8 वीं गढ़वाल राइफल के 2 अधिकारी और 40 जवान भी शहीद हुए थे.
कारगिल युद्ध –
भारत के जम्मू कश्मीर में कारगिल की पहाड़ियों पर 5000 पाकिस्तानी सैनिको के द्वारा घुश्पैठ की गयी थी, जिसका जवाब देने के लिए भारतीय सेना के द्वारा ओपरेशन विजय चलाया गया था. इस कारगिल युद्ध में गढ़वाल राइफल के 54 जवान शहीद हुए थे. इस युद्ध में ही भारतीय पाइलेट नचिकेता को पाकिस्तान ने पकड़ लिया था लेकिन बाद में पाकिस्थान को उन्हें रिहा करना पड़ा था.
Garhwal Rifles का ऑफिस लैंसडाउन है जो पौड़ी गढ़वाल से लगभग 80 KM की दूरी पर स्थित है. Garhwal के युवा Army में Bharti होने के लिए कड़ी मेहनत करते है और भर्ती कैंप में भाग लेते है. और Uttarakhand के युवाओ के लिए सेना में भर्ती होना एक सम्मान की बात है.
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